कहानी :- दो ठगो की मजेदार कहानी (Studywow: story hindi mein)
(एक ठग घर से ठगी का धंधा करने के लिए जाने की तैयारी कर रहा है। घर मे युवा पत्नी है और दो बच्चे। ठग आँगन में टहल रहा है। वह आपने दोनो हाथ कमर पर रखे हुए है। कुछ सोचने की मुद्रा में वह पत्नी को आवाज देता है।) (Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)पात्र-परिचय
चतरू और मटरू दो ठगमटरू की पत्नी दुलारी
चतरु की पत्नी चांदनी
सेठ दौलतराम और दरोगा
(Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)
मटरू ठग : अरे ओ! छंगा की माँ!
रामदुलारी : हा-हा बोलो, क्या आफत आ गई, कुछ बोलोगे या ऐसे ही बुलाये जा रहे हो ?
मटरू ठग : आज एक अच्छा विचार आया है दिमाग मे। एक ही बार मे सामने वाला खत्म!
रामदुलारी : कैसा विचार! कुछ मेरे को भी तो बताओ?
मटरू ठग : किसी को ठगने का विचार।
रामदुलारी : क्या? कोई मकान या दुकान बना रहे हो क्या?
मटरू ठग : रहने दे, रहने दे। मसखरी मत कर मेरे से...।
रामदुलारी : अजी मैं कहूं हु, अब यह चार सौ बीसी का धन्धा छोड़ दो। किसी दिन धर लिए जाओगे तो छठी तक का दूध याद आ जावेगा। औरो का उल्लू बनाने चले हो, कही खुद मत बन जाइयो।
मटरू ठग : क्या मत बन जाइयो...।
रामदुलारी : मुर्गा...।
मटरू ठग : (हँसता है) किसकी माँ ने दूध पिलाया है, जो मेरे को मुर्गा बनावेगा।
रामदुलारी : अच्छा-अच्छा। पर यह बनाने वाला धंधा छोड़ दो। यह अच्छा नही लगता मुझे।
मटरू ठग : अरी पगली! बनाता कौन नही, सब बनाते है। चाटूकार जबान से उल्लू बनाता है और नारी अपने रूप से। मैं अक्ल से।😂
रामदुलारी : यह अक्ल किसी और काम मे लगा लो।
मटरू ठग : जो बना नही सकता, वह खा नही सकता।
रामदुलारी : अच्छा-अच्छा, जैसा करोगे, वैसा भरोगे।
मटरू ठग : अच्छा जल्दी कर, कुछ नास्ता-पानी दे।
(रामदुलारी खाने का सामान लेकर आती है)
रामदुलारी : जरा देख कर काम करना, कभी पकड़ लिए जाओ।
मटरू ठग : तू चिंता मत कर, बस जल्दी से उठ और एक मटकी में किनारे से नीचे तक गोबर भर दे। और फिर गोबर के ऊपर किनारे पर घी की परत बना दे। फिर देख मेरी बुद्धि का कमाल। अभी आता हूं किसी-न-किसी को चित करके...।
(ठग घी की मटकी सिर पर रखकर बाहर चला जाता है। सड़क पर आते-जाते लोगों की भीड़ में आवाज लगाता है।)
मटरू ठग : घी लो, घी लेलो।
एक व्यक्ति : (खूबसूरत म्यान में तलवार डाले हुए) अरे भाई घी बेचेगा?
मटरू ठग : हाँ-हाँ क्यो नही, जरूर बेचूंगा। बेचने को ही निकला हूँ घर से।
व्यक्ति : पर मेरे पास देने को नकदी नही है। तलवार है, राजा मानसिंह की...तारीखी चीज है, तारीखी।
मटरू ठग : (तलवार की मुठ और म्यान पर हाथ फेरकर देखता है) मैं तैयार हूं बदला करने को, ला तलवार दे और मटकी घी की ले ले।
( दोनो घी और तलवार का बदला करके अपने-अपने घर की और मुड़ जाते है। )
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【 ठग अपने घर में रामदुलारी (पत्नी) से बात कर रहा है। 】
मटरू ठग : आज ऐसी चीज हाथ लगी है कि रामदुलारी तू भी क्या याद करेगी?
रामदुलारी : क्या हाथ लगा, कुछ तो बता दो!
मटरू ठग : अरी मूरख, कल यह तलवार लेकर मैं राजा के पास जाऊंगा और दस पाँच हजार टके में बेच आऊंगा। देखती है, कोई ऐसी-वैसी नही है। राजा मानसिंह की तलवार है, राजा मानसिंह की।
रामदुलारी : मैं भी तो देखु, निकाल जरा तलवार।
मटरू ठग : (म्यान से तलवार निकलते हुए) अरे लूट गया, लूट गया। वह तो मुझसे भी बड़ा ठग निकला। काठ की तलवार दे गया, काठ की...।
रामदुलारी : अब चीखों मत। शेर को सवा शेर मिल गया ना।
मटरू ठग : तो क्या वह घी चुपड़ी खा रहा होगा घर में! बताउँगा उसे भी को शेर और कौन सवा शेर!
( काठ की तलवार वाला ठग आपने परिवार में बैठा डिंग हाँक रहा है। )
दूसरा ठग(चतरु) : [अपनी पत्नी(चाँदनी) से ] आज तो मजे आ गए, एक आदमी को ऐसा चित्त किया के जीवन-भर याद करेगा बच्चू।
चाँदनी : अरे! किसे चित्त कर आया, कुछ बता तो सही मुझे भी।
चतरु ठग : मटकी भरा घी बेच रहा था एक गाँववाला। मैंने काठ की तलवार उसे दी और घी ले लिया, बोल कैसी रही...?
चाँदनी : पर यह काठ की तलवार कब तक चलेगी, यह तो बता?
चतरु ठग : अभी दुनिया मे दो पाँव के गधो की कमी नही हुई है। काठ की तलवार तो चलती ही रहेगी।
चाँदनी : सौ दिन चोर के होते है तो एक दिन साधु का भी होता है।
चतरु ठग : होता होगा। तू जल्दी से थाल परोस और दाल में घी डाल, चम्मच-भर के।
( चाँदनी खाने का थाल लगाकर ठग के सामने रखती है और मटकी का ढक्कन खोलकर उसमे गहरा चम्मच मारती है, तो चम्मच गोबर से भर जाता है। )
चाँदनी : अरे यह घी है या गोबर?
चतरु ठग : गोबर क्यो होने लगा, घी है असली शुद्ध घी।
चाँदनी : (गोबर से भरा चम्मच ठग की और बढाते हुए) खा इसे, देख गोबर है या घी।
चतरु ठग : (माथा पीटते हुए) अरे, आज तो शेर को सवा शेर मिल गया। कोई पागल बना गया मेरा भी।
चाँदनी : पागल नही, उल्लू बना गया।
चतरु ठग : खैर कोई बात नही। आज नही तो कल मिलेगा। कभी न कभी तो मिलेगा ही, वही परखी दूंगा की बच्चू मान लेगा गुरु।
( दोनो ठग बाजार में आपने-आपने शिकार की तलाश में घूम रहे है। सड़क पर भीड़ है। अचानक एक स्थान पर दोनों आपने-सामने आ जाते है। )
पहला ठग(मटरू) : [ दूसरे ठग(चतरु) का हाथ पकड़ते हुए ] अरे भईया, मैं तो कई दिन से तुझे ढूंढ रहा था, क्या नाम है तेरा?
दूसरा ठग(चतरु) : मेरा नाम चतरु है! और तेरा?
पहला ठग : मेरा नाम है मटरू।
चतरु : वह घटना याद है तुझे, मटरू भाई।
मटरू : कौन-सी? घी-गोबर और काठ की तलवार वाली।
(Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)
( दोनो सड़क के किनारे खड़े होकर एक-दूसरे को गले लगते है और उस घटना को याद करके हँसते है। )
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कहानी :- दो ठगो की मजेदार कहानी (भाग-2)
(Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)( दोनो सड़क के किनारे खड़े होकर एक-दूसरे को गले लगते है और उस घटना को याद करके हँसते है। )
चतरु : यार, उस दिन तो हमने एक-दूसरे पर हाथ साफ कर दिया।
मटरू : धोखे में मारे गए।
चतरु : चल अब ऐसा करते है, तू भी बड़ा कलाकार है, मैं भी कम नहीं। मिलके धंधा करते है। दो चतुर बुद्धि वाले मिलकर काम करेंगे तो देखना कैसे वारे के न्यारे होते है!
मटरू : ठीक है चतरु, तेरा विचार एकदम ठीक है। एक और एक मिलके ग्यारह होते है। होते है कि नही होते!
चतरु : बिल्कुल-बिल्कुल! एक और एक मिल के ग्यारह तो होते ही है।
( दोनो वही बैठकर सलाह-मशविरा करते है। )
चतरु : अरे, मटरू वह सेठ लक्ष्मीदास था ना, शहर का सबसे बड़ा दौलत वाला। मारने पर उसकी समाधि बनी है ब्रिजघट के पास।
मटरू : हाँ मुझे पता है, समाधि बनी है उसकी।
चतरु : चल सेठ के पूत दौलतराम को ठगते है। दाँव सीधा पड़ गया तो बस मजा ही मजा है।
मटरू : दाँव बता...।
चतरु : तू आज रात में सुरंग खोदकर समाधि के तले जाकर बैठ जा। फिर देख मेरा कमाल।
मटरू : ठीक है ...
( मटरू सुरंग खोदकर समाधि के नीचे जा छिपता है। चतरु सेठ दौलतराम के द्वार पर दस्तक देता है। )
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चतरु : सेठ साहब है, सेठ साहब है...।
दौलतराम : (बाहर आते हुए) कोन है भाई, कहाँ से आये हो?
चतरू : राम-राम सेठ जी। मैं बंबई से आया हूँ साहब।
दौलतराम : अच्छा-अच्छा, आओ बैठो।
( दोनो बैठक में बैठ जाते है। )
चतरु : वह ऐसा था सेठजी, जब आपके पिता सेठ लक्ष्मीदास बम्बई गए थे, तो हमसे एक लाख रुपये उधार ले आये थे, कमी पड़ गयी थी पैसे की उन्हें।
दौलतराम : पर उन्होंने लौटकर कभी बताया तो नही। कही रोकड़ बहीखाते में भी नही लिखा।
चतरु : लिखते कैसे? मौत ने मोहलत ही कहाँ दी, तुरंत ही तो हार्टफेल हो गया।
दौलतराम : पर तुम्हे भी तो कोई सबूत देना होगा कि पिताजी ने एक लाख तुमसे उधार लिए थे।
चतरु : हे भगवान, हे भगवान! क्या जमाना आ गया है। क्या बड़े सेठ जी से बस एक लाख- भर के लिए हम रुक्का-पर्चा लिखाते! राम-राम, राम-राम!
दौलतराम : पर कुछ तो सबूत चाहिए।
चतरु : सेठजी बड़े सिद्ध पुरुष थे, जीवन-भर पुण्य ही पुण्य करते रहे। पाप तो कभी कोई किया ही नही। ऐसे महापुरुष कोई मरते थोड़ी है, बस स्थान बदल लेते है।
दौलतराम : तो क्या मतलब है तुम्हारा?
चतरु : हाँ-हाँ, वही बताता हूँ, सेठजी! वही बताता हूँ।
दौलतराम : बताओ।
चतरु : ऐसा करते है कि आप मेरे साथ सेठजी की समाधि पर चलो, वहाँ उनकी आत्मा को पुकारकर पूछना की उन्होंने बम्बई में किसी रोनकमल तंबाकू वाले से कुछ रुपया उधार लिया था या नही?
( दोनो सेठ लक्ष्मीदास की समाधि पर चले जाते है। )
(Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)
दौलतराम : (जोर से पुकारते हुए) हे सेठ लक्ष्मीदास की पवित्र आत्मा, जवाब दे। क्या कभी सेठ जी ने बम्बई में किसी रोनकमल तंबाकू वाले से कोई रुपया उधार लिया था?
( सन्नाटा, कोई जवाब नही )
दौलतराम : पुनः वही दोहराता है।
मटरू : हाँ-हाँ मुझे याद आया, बम्बई में जरूरत पड़ने पर एक लाख रुपये मैंने इस फर्म से लिये थे। तुम यह उधार चुकता कर दो। बम्बई से यहाँ तक आने-जाने का किराया भी दे देना इन्हें।
( चतरु खुश-खुश सेठ दौलतराम को लेकर उनके घर वापस आता है। )
दौलतराम : (नोट बढ़ाते हुए) लो यह एक लाख सँभालो और यह बम्बई से आने-जाने का किराया भी।
( चतरु नोटों से भरा थैला लेकर बाहर निकलता है तो मटरू द्वार पर उसकी प्रतीक्षा में है। जैसे ही वे दो कदम आगे बढ़ते है एक दरोगा उन्हें थाम लेता है। )
दरोगा : पिल्लो! कई दिन से तुम्हारे पीछे था, बड़ी मुश्किल से पकड़ में आये हो।
चतरु : दरोगा जो, दरोगा जी (हाथ जोड़ता है) ।
दरोगा : अब क्या दरोगा जी, दरोगा जी लगा रखी है। चलो हवालात में। सो दिन ठग के तो एक दिन कोतवाल का।😂
समाप्त
(Studywow: kahaniya in hindi,story hindi mein)